नई दिल्ली: अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को राज्यसभा में वक्फ संशोधन बिल पेश किया। उन्होंने बताया कि इस बिल को व्यापक विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया और फिर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया। उनके अनुसार, वक्फ पर जेपीसी ने जितना काम किया, उतना किसी अन्य समिति ने नहीं किया।
लोकसभा में 12 घंटे की चर्चा के बाद यह बिल पारित हो गया था। वोटिंग में 520 सांसदों ने भाग लिया, जिसमें 288 ने समर्थन और 232 ने विरोध किया। इस बिल को “यूनीफाइड वक्फ मैनेजमेंट इम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट” (UMMEED) नाम दिया गया है।
*विपक्ष का विरोध और असदुद्दीन ओवैसी का विरोध प्रदर्शन*
बिल पर चर्चा के दौरान AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने विरोध स्वरूप इसे फाड़ दिया और कहा कि इसका उद्देश्य मुसलमानों को अपमानित करना है। उन्होंने महात्मा गांधी का हवाला देते हुए इसे फाड़ने की कार्रवाई को सही ठहराया।

गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया कि वक्फ में कोई गैर-इस्लामिक प्रावधान नहीं जोड़ा गया है और आरोप लगाया कि वोट बैंक की राजनीति के लिए अल्पसंख्यकों को गुमराह किया जा रहा है।
*खड़गे और अनुराग ठाकुर के बीच तीखी बहस*
बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर ने कर्नाटक में वक्फ संपत्तियों से जुड़े कथित भ्रष्टाचार के लिए कांग्रेस और मल्लिकार्जुन खड़गे पर आरोप लगाए। इस पर खड़गे ने पलटवार करते हुए कहा कि यदि उनके या उनके परिवार के किसी सदस्य द्वारा वक्फ की 1 इंच जमीन पर भी कब्जा साबित हो जाता है, तो वे राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा दे देंगे।
अब यह बिल राज्यसभा में बहस और मतदान के लिए रखा गया है, जहां विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच तीखी बहस जारी है।
आज का बड़ा मुद्दा – *वक्फ संशोधन बिल*, जिस पर देशभर में बहस छिड़ी हुई है। संसद से सड़कों तक विरोध और समर्थन की गूंज सुनाई दे रही है। सवाल ये है कि ये बिल क्या वाकई ज़रूरी है, या फिर इससे किसी खास वर्ग को नुकसान होगा?
आइए सबसे पहले आपको बताते हैं कि *वक्फ संशोधन बिल* है क्या और इसमें क्या बदलाव किए गए हैं।
– *वक्फ बोर्ड* को लेकर नियमों में बदलाव
– संपत्तियों के रिकॉर्ड और ट्रांसपेरेंसी पर ज़ोर
– कुछ प्रावधानों में सरकार की सीधी दखलंदाजी
– राजनीतिक और धार्मिक संगठनों की राय बंटी
अब ज़रा देखते हैं कि इस बिल का *समर्थन कौन कर रहा है और विरोध क्यों हो रहा है*?
सरकार का कहना है कि *इस बिल से पारदर्शिता बढ़ेगी और वक्फ संपत्तियों का सही इस्तेमाल होगा।* वहीं, विरोधियों का आरोप है कि *इससे धार्मिक मामलों में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ेगा।*