“ईद गाह” कोरोना काल में

579
सद्दाम हुसैन (कटिहार) आप सभी को ईद उल फितर की बधाईयां; प्रेमचंद की “ईदगाह ” वाली ईद तो नहीं हो पाई किन्तु कोरोना वाली ईद हो गई ।
कोरोना वाली ईद की खास बात ये रही कि लोग डिजिटल का प्रयोग कर ईद का आनंद लिया अपने ख्वाहिशों को कुर्बान कर घरों में ही ईद गाह बनाई, प्रेम चंद की “ईद गाह” में हामिद ने अपने ख्वाहिश को कुर्बान कर चिमटा खरीद लाता है जबकि जबकि कोरोना वाली ईद गाह में मुसलमानों ने अपनी ख्वाहिश को कुर्बान कर घर को ईद गाह बनाते हैं । कोरोना काल में लोगों ने बड़े सादगीपूर्ण ईद की खुशी मनाई , कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सभी ने अपने अपने घरों में ईद की दो रकात सुन्नत आदा किए।
ईद उल फितर यह मुसलमानों की खास पर्व है जो इस्लामिक कैलेंडर के शवाल की पहली तारीख को मनाई जाती है। यह ईद एक माह की रोज़े की खुशी में मनाई जाती है । रमज़ान के महिने में लोग ज्यादा से ज्यादा इबादात में लगे रहते हैं रोज़े रखते हैं, तरावीह पढ़ते हैं और नेकीयों का काम करते हैं, रोज़े का अर्थ होता है सुबह सादिक से सूर्य अस्त तक खाने पीने और गुनाहों के कामों से बचना जैसे झूठ न बोलना है, इस के बदले में यह दिन मुसलमानों को ईद की शक्ल में खुशी मनाने को मिली है।
पूरे विश्व के लोग ईद मनाते हैं, शवाल के चांद नज़र आने पर सुबह अपने घर से बाहर मैदान में एक जगह जमा हो कर ईद की दो रकात सुन्नत अदा करते हैं। भारत में 13 मई की शाम चांद नज़र आया और 14 मई को लोगों ने ईद की नमाज़ अपने अपने घरों में अदा की ।