वैश्विक महामारी कोरोना ने बिहार सरकार की विफलताओं को दर्शाया है और यह उजागर किया है कि बिहार सरकार युवाओं को रोजगार देने के मामले में सब से पिछड़े हैं
बिहार से बाहर फंसे मजदूरों की पंजीकृत संख्या तकरीबन 38 लाख है जिसमें से सिर्फ 15 से 20 लाख ही बिहार लौट पाए हैं इन मजदूरों को घर पर ही काम दिए जाने के मामले में अखबारों और टीवी चैनलों में सुर्खियां बटोर रहे थे कि राज्य सरकार ने 50 लाख श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने का लक्ष्य तय किया है। राज्य सरकार 50 लाख मजदूरों के लिए रोजगार मुहैया कराने के लक्ष्य पर काम कर रही है मई महिने को बिहार सरकार तहलका मचाये हुए था, ऐसा लग रहा था कि अब बिहार का कल्याण होने ही वाला है, स्क्रीन के पर्दे में बड़े बड़े सुनहरे शब्दों में दिखाया जाता था कि अब बिहार के लोगों को बाहर जाने की जरूरत नहीं है बिहार में ही काम मिलेगा इंडस्ट्री लगाया जा रहा है मजदूरों को मिलेगा रोजगार के अवसर तीन लाख 91 हजार योजनाएं शुरू कर दी गई हैं, बड़ी बड़ी दावा किया जा रहा था ।
अभी तक तालाबंदी खत्म हुए नहीं कि मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है।
बसों में भर भर कर बिहार से मजदूर पंजाब, हरियाणा ,महाराष्ट्र और दुसरे राज्यों की ओर जाने को मजबूर है।
इस बस की तसवीर देख रहे हैं यह उन हजारों बसों में से एक है जो मजदूरों को बिहार से बाहर ले जा रही है।
अब प्रश्न यह उठता है कि 50 लाख मजदूरों को रोजगार देने की बात कर रहे थे पर यह क्या हो रहा है 50% मजदूरों को भी रोजगार नहीं दे पा रहे हैं ।
कथनी करनी में अंतर है विहार वासियों को सोचने की जरूरत है।
लेखक : सद्दाम रिफ्अत, टी जी टी, सामाजिक विज्ञान, मानू माडल स्कूल, हैदराबाद।